18 Jun

इतिहास के महापुरुष पूज्य बुद्धिसागरसूरिजी के जीवन का एक नज़ारा, जिनके वर्षों पूर्व के विचारों से वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्रभाई मोदी भी प्रभावित है!

 

गुजरात के विजापुर नगर में पटेल परिवार में जन्मे, और जैन परिवार के संपर्क में आने पर जीवन का जड़ मूल से परिवर्तन कर जीवन को जिन शासन को समर्पित किया।
केवलज्ञानी वीर प्रभु के अमृतवचन का आस्वाद लेने के बाद, और पूज्य श्रमणश्रेष्ठ मुनिपुंगव श्री रविसागरजी महाराज साहेब जैसे सद्गुरु का योग प्राप्त करने पर। बहेचरदास पटेल दृढ़ निश्चयी बने।

पालनपुर में मुनि श्री सुखसागरजी महाराज के शिष्यत्व को स्वीकार कर मुनि बुद्धिसागर बने।
जिनशासन के महान यात्री की यात्रा का शुभारंभ हुआ।

दीक्षा के प्रथम वर्ष सूरत चातुर्मास के दौरान जैन समाज पर ख्रीस्ती समाज के पादरी ने अनेकविध टिप्पणियां की नूतन मुनिश्वर के सत्व और गंभीरता को देख सूरत में विराजित सभी आचार्य भगवंतो एवं श्री संघ ने मुनिश्वर को टिप्पणियों के प्रत्युत्तर देने का कार्यभार सौंपा,और महज एक ही दिन की अवधि में नूतन मुनिश्वर ने ख्रीस्ती धर्म संवाद नामक पुस्तक की रचना कर टीका कारों के मुख पर ताले लगवाए जो आज तक खुले नहीं।

ज्ञान प्रतिभा के धनी और श्रेष्ठ लेखक पूज्यश्री जैन और जैनेतर समाज में ज्ञान की उषा को प्रज्वलित करने वाले थे।
एक ऐसा व्यक्तित्व जो समाजवाद,जातिवाद के भेदभाव से अस्पृष्ट था,इसी कारण से उनकी उपकार वृष्टि जैन,जैनेतर, राजा, महाराजा, प्रधान, विद्वान, कवि, साहित्यकार, पंडित, शास्त्री, श्रमण आदि सभी पर सदैव बरसती रही।

सिर्फ उपदेशक नहीं थे,उनकी वाणी का प्रभाव था की जिसके कारण
बरोड़ा के महाराजा श्रीमान सयाजीराव गायकवाड के जीवन में धर्म तत्व का बीजारोपण हुआ,बोध देकर प्रतिबोध किया, इसीलिए सही मायनों में पुज्यश्री राजप्रतिबोधक थे।

अनेक अंग्रेजी भाषा के विद्वानों की शंकाओं का समाधान कर उनके अंदर प्रभु वीर की वाणी का सिंचन करने वाले पूज्य श्री श्रेष्ठ मार्गदर्शक थे।
श्रमण परंपरा में जाहिर प्रवचनों के पावन प्रणेता थे।
वीर प्रभु के सूक्ष्म, गंभीर वचनों की उद्घोषणा के द्वारा जनता में एक नई चेतना को जागृत करने वाले, ज्ञान और क्रिया का समन्वय बताने वाले, हिंसा अत्याचार है और अहिंसा अनुकरणीय है यह जीवन प्रगति के परम सूत्र के उद्घोषक थे।

मिसिस स्टीफनसन, अन्य नास्तिक ईसाई लोग, एवं लाला लाजपतराय जैसे व्यक्तियों ने जैन धर्म के किसी बात को लेकर मजाक उड़ाया तब पूज्य बुद्धिसागरजी महाराज साहेब ने अपनी पुस्तक में सत्य जवाब, स्पष्टीकरण, दृष्टांत और तर्क से युक्त लेखन किया और उनके मजाक का मुंहतोड़ जवाब दिया तब विश्व को इस महाशक्ति युक्त जैन मुनि का परिचय हुआ।

जैन धर्म के वर्षों के इतिहास में एक ऐसे मुनिवर थे पूज्यश्री जिन्होंने महज 25 वर्ष के साधु जीवन में संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, हिंदी, गद्य और पद्य में 138 से अधिक ग्रंथों की सौगात जिनशासन को अर्पण की।

लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने कर्मयोग नामक पुस्तक को लिखकर प्रकाशित किया और उसी दिन उन्हें पूज्य योगनिष्ठ श्रीमद
बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब द्वारा लिखित कर्मयोग पुस्तक प्राप्त हुई इस पुस्तक की सिर्फ प्रस्तावना पढ़कर लोकमान्य तिलक ने कहा यदि मुझे पता होता की जैन आचार्य श्री
बुद्धिसागरसूरीजी महाराज ने इस गहराई से युक्त कर्मयोग पुस्तक लिखी है तो मैं मेरी कर्मयोग को कतही लिखने का पुरुषार्थ नहीं करता।
यह समर्थ साहित्यकार का परिचय एक साहित्यकार ने दिया था।

साहित्य रचना की रूचि संघ, समाज और राष्ट्र की उन्नति के लिए निरंतर करनेवाले, एक क्षण का भी विलंब किए बिना जो लेखन कार्य में मस्त रहते थे।
साहित्य सृजन के लिए रोज 12 पेंसिलों का उपयोग करना वह उनके लिए एक सहज क्रिया थी। प्रभु वीर के अंश को जीवंत रखने में इस महापुरुष ने एक भगीरथ पुरुषार्थ उठाया था।

ज्ञान सुरभि से महकता जीवन ऐसा था जिसकी महेक ने श्रीमान सयाजीराव गायकवाड को धर्माभिमुख किया, जिसके प्रभाव से स्वयं की धर्म श्रवण की जिज्ञासा को तृप्त करने हेतु पूज्य श्री को दो बार गायकवाड़ पैलेस में प्रवचन फरमाने के लिए निमंत्रण दिया।
मानसा दरबार,साणंद दरबार, राजा, सेठ, साहूकार, विद्वान उनके अनुरागी बनते चलें और पूज्य श्री और भी निस्पृहि बनते चलें।

जिनशासन के अति गंभीर ज्ञान खजाने के रत्न जैसे षट्द्रव्यविचार,आगमसार, द्वादसार नयचक्र आदि ग्रंथों पर अपनी कलम चला कर एक अद्भुत रचना को आकार दिया।

लोगों की श्रद्धा जब भ्रष्ट होने लगी,लोग कुमार्ग का चयन करने लगें उस समय पूज्यपाद आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीजी महाराज साहेब ने समाज की सुरक्षा के लिए श्री घंटाकर्ण महावीर की साधना कर उन्हें प्रत्यक्ष किया और उनको संघ समाज की सुरक्षा करने हेतु स्थापित किया लोगों की श्रद्धा को अक्षुण्ण रखने का प्रबल पुरुषार्थ किया।

 

कवित्वशक्ति, कुरीति निवारण, दुरांदेशिता आदि गुणों के स्वामी होने पर काशी, मुंबई, बरोड़ा, राजनगर आदि के विद्वान पंडितो और श्रावकों ने पूज्य बुद्धिसागरजी महाराज साहब को आचार्य पदारूढ़ किया।

 

योग के परिपूर्ण ज्ञाता होने के कारण उन्हें योगनिष्ठ पद से विभूषित किया।
षट्दर्शन आदि अनेक शास्त्रों के पारगामी होने पर शास्त्र विशारद पद से नवाजा गया।
आचार्य पद के पश्चात यह सरस्वतीनंदन भारतवर्ष के सभी लोगों को ज्ञान, स्वानुभव और समझदारी का ज्ञान बिना किसी भेदभाव के देने लगे।

बचपन से ही मधुमेह की बीमारी से अशाता का उदय आता था, कोई भी प्रकार से ठीक ना होने पर मुंबई के प्रसिद्ध डॉक्टर कपूर को बताया, डॉक्टर कपूर ने कहा की अंतिम समय आ चुका है, अब आप ज्यादा दिन के मेहमान नहीं है।
उन्होंने 1 हफ्ते का समय दिया परंतु समय निरंतर बढ़ता गया और उनके योग के कारण पूज्यश्री की जीवनधारा और अस्खलित रूप से चलती गई।अंत में डॉक्टर कपूर ने कहा कि आपश्री ने आज मेडिकल रिकार्ड्स में एक नया चमत्कार दर्ज किया है।

ऐसे भी योगियों को नियमों के बंधन नहीं होते।

एक निडर और शक्तिशाली भविष्यवेत्ता बनना सबके हाथ की बात नहीं होती।
अपने जीवन काल में अनेक भविष्यवाणियां व्यक्त की परन्तु कही भी लोकरंजन,भक्त बनाना या बढाने का आशय नहीं।

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पूज्य श्री की 100 वर्ष पूर्व की एक भविष्यवाणी का उल्लेख भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रभाई मोदी ने अपने लाल किल्ले से प्रवाहित भाषण में किया था,की पानी जब मुफ्त में मिलता था उस समय बुद्धिसागरसूरीजी महाराज ने लिखा था कि भविष्य में पानी बोतलों में किराने की दुकान में बिकेगा।
जो आज हम सभी के समक्ष जीवन्त दृष्टांत है।

वर्तमान परिस्थितियों को देख कर महसूस होता है कि आज से 100वर्ष पूर्व एक और भविष्यवाणी की थी कि भविष्य में देशों के बीच में युद्ध तो होंगे, लोग भी मरेंगे परंतु आमने-सामने लड़कर के नहीं ……
आज वर्तमान में चल रही bio-war की तैयारी इस बात का साक्षी पाठ है। ….
जिनके गृहस्थ जीवन,
कविजीवन, साधुजीवन, पांडित्यजीवन,
भक्तजीवन, आध्यात्मिक जीवन, मस्तफकीरी जीवन, योगजीवन, त्यागीजीवन, साहित्यजीवन, आदि गुुणों पर एक एक स्वतंंत्र ग्रंथ की रचना हो सकती है । धर्म की आड़ में अपने स्वार्थों की सिद्धि करने वाले धर्म के माने हुए ठेकेदार अध्यात्म सत्य को भौतिकवादी आवरण से ढँकने का बार-बार प्रयास करते हैं। इन्हीं के कारण चित्त की आन्तरिक शुचिता का स्थान बाह्य आचार ले लेते हैं। पाखंड बढ़ने लगता है। कदाचार का पोषण होने लगता है।

जब धर्म का यथार्थ अमृत तत्व सोने के पात्र में कैद हो जाता है तब शताब्दी में एकाध साधक ऐसे भी होते हैं , जो धर्म-क्रान्ति करते हैं, धर्म के क्षेत्र में व्याप्त अधार्मिकता एवं साम्प्रदायिकता पर प्रहार कर, उसके यथार्थ स्वरूप का उद्‍घाटन करते हैं। ऐसे ही एक महान साधक का नाम था आचार्य बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराजा। जो नई क्रांति के पुरोधा थे, समन्वय के प्रतीक थे, कुरीति के निवारक थे, ऐसे महान योगी को भावभीनी वन्दना

गणिवर्य कल्याणपद्मसागर,मुनि महापद्मसागर

 

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